cgh

शनिवार, 21 नवंबर 2020

सख्त कोरोना प्रोटोकॉल के साथ ही बढ़े अर्थव्यवस्था की रफ्तार

भारत एक बड़ा देश है। यहां सभी राज्यों के लिए कोई भी चीज एक-सी नहीं हो सकती है। यह कोरोना के मामले में भी है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रफ्तार से संक्रमण बढ़ रहा है और फिर नियंत्रित हो रहा है। दिल्ली का अनुभव यह है कि यहां तीसरी लहर आ चुकी है।

यह तो सिर्फ केसों की संख्या के आधार पर है। अगर हम यहां रोजाना होने वाली मौतों का आंकड़ा देखें तो यह और भी चिंताजनक बात है। पूरे देश में अभी करीब रोजाना होने वाली मौतें 500 के नीचे हैं, जबकि दिल्ली में यह आंकड़ा 100 के करीब है। वहीं अगस्त तक दिल्ली में जो टेस्ट पॉजिटिविटी रेट सुधर रहा था, वह भी अब उल्टा होने लगा है।

इसको नियंत्रित करना बहुत जरूरी हो गया है। लेकिन जब आप पूरे देश के नंबर देखते हैं तो केस घट रहे हैं। कुछ लोग मानते हैं कि पिछले कुछ दिनों में टेस्टिंग कम हुई इसलिए देशभर में संक्रमण के मामले घटे हैं। यह इस समय एक आम गलत धारणा बन गई है। लेकिन ऐसा है नहीं।

पिछले करीब 3 महीने से औसतन 11 लाख टेस्ट रोजाना हो रहे हैं। इसलिए यह नहीं कह सकते हैं कि हाल के दिनों में टेस्टिंग घटाने के कारण संक्रमण के केस कम आए। बल्कि वास्तव में केस कम हुए हैं, टेस्टिंग कम नहीं हुई है। हालांकि दिल्ली में भी पिछले एक हफ्ते में तीसरी लहर भी थोड़ी नियंत्रण में नजर आ रही है।

इस स्थिति के बावजूद सख्ती बढ़ानी होगी, दिल्ली में ही नहीं बल्कि पूरे देश में। क्योंकि अभी भी ऐसा कोई कारण नहीं है कि पूरे देश में दूसरी लहर नहीं आ सकती है। पिछले कुछ दिनों में नियमों का उल्लंघन काफी बढ़ गया है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि अब पॉलिसी सख्त होनी चाहिए।

अभी करीब 4.5 लाख एक्टिव केस हैं, लेकिन यह संक्रमण ऐसा है कि यह नंबर दोबारा बढ़ सकता है। क्योंकि देश की जनसंख्या बहुत बड़ी है। अभी बहुत बड़ी जनसंख्या ऐसी है जिसे संक्रमण हो सकता है। दिल्ली में केस बढ़ने का कारण यह है कि यहां अलग-अलग राज्यों से बहुत लोग आते रहते हैं। मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरू, हैदराबाद जैसे शहरों में बाहर से कम लोग आते हैं। दिल्ली में उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ही बहुत बड़ी संख्या में लोग आते रहते हैं।
अब राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन नहीं होगा। बल्कि किसी राज्य में भी लॉकडाउन करना अक्लमंदी नहीं होगी। जहां-जहां केस हो रहे हैं, उन क्षेत्रों में प्रोटोकॉल को मानना होगा, मास्क पर सख्ती जरूरी है, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन, क्वारैंटाइन का पालन करना होगा। अब लॉकडाउन करने का कोई अर्थ नहीं है।

दरअसल, दुनिया में लॉकडाउन का कॉन्सेप्ट है कि इस तरह की बीमारी में लॉकडाउन लगाकर एकदम से लोगों को मिलने-जुलने से रोका जाए। इस दौरान सरकार अपनी तैयारियां कर सके, उसे समय चाहिए होता है। जैसे- नए बेड्स जोड़ना, ऑक्सीजन का स्टॉक करना, फीवर क्लीनिक बना देना आदि। हमारे यहां यह तैयारी पिछले 6-8 माह में हो चुकी है।

इसलिए लॉकडाउन लगाना अर्थव्यवस्था को और संकट में डालना है। यूरोप से तो हम यह सीख ही सकते हैं कि अगर आप अचानक अर्थव्यवस्था को खोल देते हैं तो आपको टिकाऊ ग्रोथ नहीं मिलती है। यूरोप और अमेरिका में मार्च के अंत में लॉकडाउन हुआ और पूरी दुनिया की इकोनॉमी बैठ गई।

यूरोप में शुरुआत में लॉकडाउन हुआ लेकिन उन्होंने खोलने में बहुत जल्दबाजी कर दी। असर यह हुआ फ्रांस, जर्मनी, यूके और इटली आदि में जितनी रिकवरी हुई थी वो फिर पीछे चली गई। जबकि भारत में धीरे-धीरे अनलॉक हुआ है और इकोनॉमी धीरे ही सही लेकिन बढ़ती रही है।

लोग अब वैक्सीन की उम्मीद और हर्ड इम्युनिटी की आशा में भी लापरवाह हो रहे हैं। दुनिया के तमाम इम्यूनोलॉजिस्ट ने बताया है कि यह संक्रमण भी एक फ्लू की तरह ही है। इसीलिए अब रिसर्च बता रहे हैं कि बिना संक्रमित हुए भी इम्युनिटी प्राप्त हो सकती है। 2003 में सार्स के समय भी बिना संक्रमित हुए एंटीबॉडी डेवलप होने के मामले सामने आए थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम लापरवाह हो जाएं।

यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस संक्रमण में एंटीबॉडी कितने दिन तक रहते हैं। इसी तरह दुनिया में वैक्सीन विकसित करने के मामले में काफी अच्छे रिजल्ट मिले हैं लेकिन लापरवाही करने से पहले हम यह न भूलें कि अभी वैक्सीन का रिसर्च पूरा नहीं हुआ है। बस परिणाम अच्छे आ रहे हैं। इसे हम तक पहुंचने में समय लग सकता है।

वैक्सीन बन भी जाएगी तो हमारे यहां लॉजिस्टिक की बड़ी समस्या होगी। हमारी डिमांड बाकी देशों से बहुत ज्यादा है। किसे पहले मिलेगी, यह भी स्पष्ट नहीं है। इस पर बात जरूर हो रही है लेकिन अभी कोई पॉलिसी नहीं बनी है। इसलिए जब तक टीका आ न जाए, हमें कोविड के सभी प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करना होगा। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
शमिका रवि, प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवायजरी काउंसिल की पूर्व सदस्य


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3nH4LxI
via IFTTT

Related Posts:

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें