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शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

पोते ने 6 साल की बच्ची से रेप किया, फिर जमीन पर पटककर मार डाला; सबूत मिटाने के लिए दादा ने आग लगाई

(परमिंदर बरियाणा) यहां के टांडा स्थित एक गांव में 21 अक्टूबर को 6 साल की बच्ची का रेप कर उसकी हत्या करने के बाद शव को जला दिया गया था। मामले में महज 8 दिन में जांच पूरी कर एडिशनल सेशन जज नीलम अरोड़ा की कोर्ट में टांडा के डीएसपी दलजीत सिंह खख और डीएसपी माधवी शर्मा ने शुक्रवार शाम को चालान पेश कर दिया। जब यह मामला बिहार के चुनाव में उठा तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और डीजीपी दिनकर गुप्ता ने यह दावा किया था कि 4 दिन में ही चालान पेश कर दिया जाएगा। हालांकि, फोरेंसिक रिपोर्ट की देरी की वजह से चार्जशीट पेश करने में 8 दिन का समय लग गया।

सीसीटीवी फुटेज में आरोपी बच्ची को ले जाते हुए साफ दिख रहा है।

इस केस में पुलिस ने मुख्य आरोपी सुरप्रीत को बनाया है, जबकि उसके दादा सुरजीत सिंह पर सबूत मिटाने का आरोप है। सुरप्रीत ने 35 मिनट में ही पूरी घटना को अंजाम दिया। पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, 21 अक्टूबर को मूल रूप से बिहार के रहने वाले परिवार की 6 साल की बच्ची जब अपने घर में खेल रही थी, तब सुरप्रीत ने उसे बिस्किट दिलाने का झांसा देकर अपनी हवेली में ले गया। वहां बच्ची से रेप किया और बाद में उसे पटक-पटककर मार दिया। इसके बाद लाश को चारे के बर्तन में रखकर प्लास्टिक के बोरों और घासफूस से ढंक दिया।

बाद में जब आरोपी के दादा (सुरजीत) को घटना का पता चला तो उसने हवेली में आकर बच्ची के शव को आग लगा दी और शाम को उसके घर जाकर यह कह दिया कि बच्ची ने खुद आग लगा ली है, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई।

दादा पर सबूत मिटाने की धारा लगाई
आरोपी सुरप्रीत के दादा सुरजीत पर सबूत मिटाने का ही चार्ज लगाया गया है, बाकी आरोप सुरप्रीत पर ही है। शुक्रवार को CRPC की धारा-173 के तहत इस मामले में दायर FIR नंबर-265 दिनांक 21 अक्टूबर को जो चालान पेश किया, उसमे मर्डर की धारा-302, 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ रेप की धारा-376-एबी, छोटे बच्चे को किडनैप करने की धारा-366 ए, सबूत मिटाने की धारा-201 और साजिश रचने की धारा-34, प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्राॅम द सेक्सुअल एक्ट (अमेंडमेंट) 2012, 2019 के सेक्शन-4 और 6 और एससी/एसटी एक्ट के सेक्शन 3 (2) (5) के तहत यह चार्जशीट पेश की गई है।

आरोपी दादा को 7 साल तक की सजा हो सकती है। वहीं, इससे पहले जो FIR दायर की गई थी, उसमे कुछ धाराएं अलग थीं, जिन्हें हटा दिया गया है।

सीसीटीवी अहम गवाह, 35 मिनट की पूरी वारदात
70 पन्नों की चार्जशीट में पुलिस ने CCTV को ही अहम एविडेंस बनाया है और केस में करीब 30 गवाह तैयार किए है। जब आरोपी सुरप्रीत बच्ची को उसके घर से लेकर अपनी हवेली ले जा रहा था, तो रास्ते में एक चौक पर लगे CCTV कैमरे की रेंज हवेली तक थी। CCTV में यह साफ दिख रहा था कि सुरप्रीत ही बच्ची को लेकर हवेली में दाखिल हुआ और बाद में जब वह वहां से निकला तो अपने कपड़ों को झाड़ रहा था। आरोपी 21 अक्टूबर की दोपहर 2.54 मिनट पर उस चौक में दिखता है और पूरे 35 मिनट के बाद वह अकेला ही हवेली से बाहर निकलता है। बाद में उसका दादा भी हवेली में जाते और बाहर आते दिख रहा है।

मामले को फांसी तक लेकर जाएंगे

जांच में अहम भूमिका निभाने वाले टांडा के डीएसपी दलजीत सिंह खख ने कहा कि आरोपी को फांसी दिलवाकर ही दम लेंगे, क्योंकि यह घटना उससे कम की है ही नहीं। उधर, एसएसपी नवजोत सिंह माहल ने कहा कि मुख्यमंत्री और डीजीपी के निर्देश थे कि इस मामले में रिकार्ड समय में चालान पेश किया जाए। हमारी टीम ने दिन-रात जांच करके 9 दिन में ही चार्जशीट फाइल कर दी।

11 नवंबर को पहली सुनवाई

पीड़ित पक्ष के वकील नवीन जैरथ ने बताया कि अदालत ने 11 नवंबर को पहली सुनवाई तय की है। दोनों आरोपी गुरदासपुर की जेल में बंद हैं। सुनवाई में वे वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पेश होंगे।जैरथ इस केस के लिए कोई फीस नहीं लेने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं।



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21 अक्टूबर को आरोपियों की हवेली पर जली अवस्था में मिली थी लाश।


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प्रधानंत्री ने केवडिया में सरदार पटेल को श्रद्धांजलि दी, एकता दिवस की परेड में शामिल हुए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात दौरे का आज दूसरा दिन है। आज सरदार पटेल की जयंती भी है। इस मौके पर मोदी ने केवडिया में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी पर जाकर सरदार पटेल को श्रद्धांजलि दी। अब एकता दिवस की परेड में शामिल हो गए हैं।

स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के सामने मोदी।

सरदार पटेल की जयंती के मौके पर एकता दिवस की परेड में गुजरात पुलिस, सेंट्रल रिजर्व आर्म्ड फोर्सेज, बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स, इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस, CISF और नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के जवान हिस्सा ले रहे हैं।

प्रधानमंत्री सी-प्लेन सर्विस का उद्घाटन करेंगे
मोदी केवडिया में देश की पहली सी-प्लेन सर्विस की शुरुआत भी करेंगे। गुजरात सरकार ने केंद्र के निर्देश पर सी-प्लेन प्रोजेक्ट शुरू किया है। मोदी सी-प्लेन से अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट से केवडिया डैम तक का सफर करेंगे। सी-प्लेन से 220 किमी का सफर सिर्फ 45 मिनट में पूरा हो जाएगा।

पहले दिन 1000 करोड़ के टूरिज्म प्रोजेक्ट लॉन्च किए
कोरोना के दौर में मोदी पहली बार गुजरात का दौरा कर रहे हैं। दौरे के पहले दिन शुक्रवार को उन्होंने 9 घंटे में केवडिया में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के आस-पास बने 1000 करोड़ रुपए के 16 प्रोजेक्ट लॉन्च किए। जंगल सफारी के उद्घाटन के दौरान वे तोतों के साथ मनोरंजन हुए नजर आए।



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Narendra Modi Gujarat visit day 2 live updates, Modi pays tribute to Sardar Vallabhbhai Patel


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प्रधानंत्री ने केवडिया में सरदार पटेल को श्रद्धांजलि दी, एकता दिवस की परेड में शामिल हुए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात दौरे का आज दूसरा दिन है। आज सरदार पटेल की जयंती भी है। इस मौके पर मोदी ने केवडिया में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी पर जाकर सरदार पटेल को श्रद्धांजलि दी। अब एकता दिवस की परेड में शामिल हो गए हैं।

स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के सामने मोदी।

सरदार पटेल की जयंती के मौके पर एकता दिवस की परेड में गुजरात पुलिस, सेंट्रल रिजर्व आर्म्ड फोर्सेज, बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स, इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस, CISF और नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के जवान हिस्सा ले रहे हैं।

प्रधानमंत्री सी-प्लेन सर्विस का उद्घाटन करेंगे
मोदी केवडिया में देश की पहली सी-प्लेन सर्विस की शुरुआत भी करेंगे। गुजरात सरकार ने केंद्र के निर्देश पर सी-प्लेन प्रोजेक्ट शुरू किया है। मोदी सी-प्लेन से अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट से केवडिया डैम तक का सफर करेंगे। सी-प्लेन से 220 किमी का सफर सिर्फ 45 मिनट में पूरा हो जाएगा।

पहले दिन 1000 करोड़ के टूरिज्म प्रोजेक्ट लॉन्च किए
कोरोना के दौर में मोदी पहली बार गुजरात का दौरा कर रहे हैं। दौरे के पहले दिन शुक्रवार को उन्होंने 9 घंटे में केवडिया में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के आस-पास बने 1000 करोड़ रुपए के 16 प्रोजेक्ट लॉन्च किए। जंगल सफारी के उद्घाटन के दौरान वे तोतों के साथ मनोरंजन हुए नजर आए।



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‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी बातों से निवेश को पुनर्जीवित नहीं कर सकते, यह वैश्विक निवेशकों को दूर धकेलेगा

भारत में व्यवसायों और उपभोक्ताओं के आगे बढ़ने की इच्छा और प्रयासों की अहमियत कहीं और की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। भारत एक वर्क इन प्रोग्रेस देश है, जहां हर नया संस्करण पिछली की तुलना में बेहतर रहा है। भारत अपने आप में 1.4 अरब सपनों और आकांक्षाओं का मेल है। ऐसे में सरकार की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि निष्पक्ष शासन प्रदान करना और सबकी प्रगति का रास्ता बनाना उसकी ज़िम्मेदारी है ताकि तरक्की की संभावनाएं कभी खत्म न हों। एक अच्छी आर्थिक बुनियाद की सुंदरता यह होती है कि सभी हितधारक (उपभोक्ता, व्यवसाय और सरकार) भले ही भिन्न-भिन्न उद्देश्यों के लिए काम करते हों परंतु एक-दूसरे पर निर्भरता उन्हें एक टीम बनकर काम करने के लिए मजबूर करती है।

एक राष्ट्र के रूप में हमने 1991 में अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने का फैसला किया था। इधर हाल ही में लोकल के लिए वोकल और ‘आत्मनिर्भर इकोनॉमी’ पर मुखर बयानबाजी ने हमें मूल्यांकन करने के लिए मजबूर किया है और क्योंकि यह पहली बार है जब हम दुनिया को हम अपनी अर्थव्यवस्था के बारे में ऐसा संदेश भेज रहे हैं जो वैश्विक खिलाड़ियों के लिए पहले के समान खुली नहीं है। इस तरह हम अपने आप को 2.9 ट्रिलियन डॉलर (वर्तमान जीडीपी का आकार) तक सीमित अर्थव्यवस्था बना रहे हैं। हमें देश की अन्य आर्थिक नीतियों पर भी गौर करना चाहिए जो पिछले 6 वर्षों में अमल में लाई गई हैं।

मेक इन इंडिया उचित उद्देश्य से शुरू की गई थी। हम लंबे समय से भारत की जीडीपी में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाने और इसे 25% के करीब पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं, जो कि 2019 के आंकड़ों में लगभग 13.7% है। एक ओर मेक इन इंडिया ने भारत में निर्माण करने के लिए वैश्विक दिग्गजों के लिए दरवाजे खोले तो इससे उलट अब वोकल फॉर लोकल पर ज़ोर देने का मतलब है बिना विदेशी निर्भरता के अपने लिए सब कुछ बनाना। यह मुक्त व्यापार जगत के लिए भारत के संदेश को कमजोर कर रही है।

जब हम भारत को एक मैन्यूफ़ैक्चरिंग डेस्टिनेशन के रूप में प्रमोट कर रहे थे, तब हमें व्यापार करने को आसान बनाना था और करों को तर्कसंगत करने पर भी काम करने की जरूरत थी। अनुबंध लागू करने के मामले में 2019 में भारत विश्व के 190 देशों में 163 वें स्थान पर, संपत्ति के पंजीकरण में 154वें, और करों का भुगतान करने में 115वें स्थान पर रहा।

कर व्यवस्था को सरल बनाने के नाकाफ़ी प्रयासों ने मान ट्रक्स, जनरल मोटर्स, हार्ले डेविडसन जैसे वैश्विक विनिर्माण खिलाड़ियों को अपना काम यहां से बंद करने और भारतीय बाजारों से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया। नीतियां तब परिणाम लाती हैं जब एक समान लागू की जाएं। एक क्षेत्र में लचीलापन और दूसरे में कठोरता हमेशा मिश्रित परिणाम लाएगी, जैसा कि हम देख रहे हैं।

अनियमित आर्थिक और राजनीतिक नीतियों ने एक इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में भारत की चमक को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि जीडीपी में विनिर्माण का हिस्सा घटकर 2019 में 13.7% पर आ गया जबकि 2015 में जब मेक इन इंडिया का शुभारंभ तब यह 15.6% था।

केवल भारतीय जरूरतों (वर्तमान में जीडीपी का आकर 2.9 ट्रिलियन यूएस डॉलर) पर ध्यान केंद्रित कर हम दो काम कर रहे हैं : पहला, जब हम ही अपनी जरूरतों के लिए उत्पादन करेंगे तो ऐसा ही दूसरे देश भी कर सकते हैं - इस तरह क्या हम दूसरे देशों में व्यापार कर रहे अपने निर्माताओं के हितों को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित नहीं कर रहे हैं? वे अन्य देशों में विनिर्माण करते समय ऐसे ही प्रतिरोध का सामना करेंगे। दूसरा, हम दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य, कम लागत पर विनिर्माण करने वाले देशों को मेगा अवसर उपहार में दे रहे हैं। अप्रैल 2018 और अगस्त 2019 के बीच चीन से बाहर जाने वाले 56 व्यवसायों में से केवल 3 भारत में आए और शेष वियतनाम, ताइवान, थाईलैंड और इंडोनेशिया में स्थानांतरित हो गए (नोमुरा रिपोर्ट के अनुसार)।

किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए उपभोग अंतिम लक्ष्य है और मूल्य सृजन, बचत और निवेश ऐसे स्तंभ हैं जो सही मायने में आर्थिक विकास को गति देते हैं और वैल्यू क्रिएट करते हैं। पिछले दो वर्षों से हाउसहोल्ड और बिज़नेस द्वारा निवेश निरंतर कम हुआ है। कंपनियां 70% से कम क्षमता पर काम कर रही हैं और पूंजी निवेश या नई नौकरियों के सृजन की आवश्यकता महसूस नहीं कर रही हैं।

कोविड के कारण सामने आए सरकारी प्रोत्साहन पैकेजों में भी यही भ्रम स्पष्ट झलकता है। भारत का प्रोत्साहन पैकेज क्रेडिट पर केंद्रित है, जबकि IMF के अनुसार यूएस और ब्राज़ील जैसे देशों ने जीडीपी के 11% और 12% का बड़ा वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज दिया, जबकि भारत ने महज़ 2%। क्रेडिट इस समय उपाय नहीं है। निवेश-खपत अपने सबसे कम स्तर पर है।

आज की दुनिया में वापसी की राह पर अकेले नहीं चल सकते। आज भारत का कद विशाल उपभोक्ता आधार के कारण है। विदेशी निर्माता भारत में प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता लाते हैं, जो घरेलू निर्माताओं को भी उत्कृष्ट बनाने में मदद करता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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गौरव वल्लभ, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।


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मुंबई में मास्क नहीं लगाया तो लगाना पड़ेगी झाड़ू; तुर्की में भूकंप से तबाही; गुड़गांव के फोर्टिस हॉस्पिटल में रेप

नमस्कार!

अमेरिका में हर सेकंड एक से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हो रहे हैं। भारत की तुलना में संक्रमण की यह रफ्तार दोगुनी है। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...

सबसे पहले देखते हैं, बाजार क्या कह रहा है…

  • BSE का मार्केट कैप 157 लाख करोड़ रुपए रहा। BSE पर करीब 46% कंपनियों के शेयरों में गिरावट रही।
  • 2,751 कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग हुई। इसमें 1,319 कंपनियों के शेयर बढ़े और 1,271 कंपनियों के शेयर गिरे।

आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर

  • IPL में आज डबल हेडर मुकाबले। पहला मैच दिल्ली और मुंबई के बीच दोपहर साढ़े तीन बजे से दुबई में होगा। दूसरा मैच बेंगलुरु और हैदराबाद के बीच शाम साढ़े सात बजे से शारजाह में होगा।
  • महाराष्ट्र में आज लॉकडाउन को लेकर नई गाइडलाइन जारी हो सकती है। गुरुवार को राज्य में 30 नवंबर तक लॉकडाउन बढ़ाने का ऐलान किया गया था।
  • प्रधानमंत्री मोदी आज साबरमती से स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के बीच सी-प्लेन सर्विस का उद्घाटन करेंगे।

देश-विदेश

चुनाव आयोग ने कमलनाथ से स्टार प्रचारक का दर्जा छीना

चुनाव प्रचार के दौरान आचार संहिता के उल्लंघन के लिए चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ से स्टार प्रचारक का दर्जा छीन लिया है। कमलनाथ ने पिछले दिनों शिवराज कैबिनेट की मंत्री इमरती देवी को आइटम कहा था। इस मामले पर EC कमलनाथ के जवाब से संतुष्ट नहीं है।

मास्क न पहनने पर मुंबई में सख्ती, 200 रु. जुर्माना

मुंबई में बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) ने मास्क न पहनने वालों पर सख्ती बढ़ा दी है। BMC ने कहा है कि अब कोई बिना मास्क के पकड़ में आया तो उसे सड़कों पर झाड़ू लगानी पड़ सकती है। 200 रुपए जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। मुंबई में एपेडमिक एक्ट लागू होने तक मास्क को अनिवार्य किया गया है।

उत्तर प्रदेश में अमेठी में दलित प्रधान के पति को जिंदा जलाया

उत्तर प्रदेश में अमेठी में गुरुवार रात दलित प्रधान के पति को जिंदा जला दिया गया। अधजली हालत में लखनऊ के ट्रामा सेंटर ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई। हत्या के बाद से गांव में तनाव है। पुलिसबल तैनात हैं। अमेठी से सांसद स्मृति ईरानी के दखल के बाद पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है।

गुड़गांव में फोर्टिस हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर भर्ती युवती से रेप

गुड़गांव के फोर्टिस अस्पताल में जिंदगी बचाने के लिए लड़ रही 21 साल की युवती से रेप का मामला सामने आया है। लड़की वेंटिलेटर पर है। 22 से 27 अक्टूबर के बीच उससे रेप हुआ। पीड़ित को होश आने पर 28 अक्टूबर को उसने अपने पिता को टूटे-फूटे शब्दों में आपबीती बताई। आरोपी का नाम विकास बताया है।

तुर्की और ग्रीस में भूकंप, कई इमारतें गिरीं, सैकड़ों घायल

तुर्की और ग्रीस में शुक्रवार शाम भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7 मापी गई है। तुर्की में ज्यादा नुकसान की आशंका है। यहां 4 लोगों की जान गई और 120 लोग घायल हो गए। कई इमारतें भी जमींदोज हो गईं। ग्रीस में झटकों के बाद लोग दहशत में घरों से बाहर आ गए।

ओरिजिनल

मुंबई में गार्ड को देख तय किया, गांव लौट खेती करूंगा

औरंगाबाद के बरौली गांव के रहने वाले अभिषेक कुमार मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थे। अच्छी खासी सैलरी थी। अचानक 2011 में गांव लौट आए। आज वो 20 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। दो लाख से ज्यादा किसान देशभर में उनसे जुड़े हैं। सालाना 25 लाख रुपए का टर्नओवर है।

एक्सप्लेनर

अब आप भी खरीद सकते हैं कश्मीर में जमीन, मगर कैसे?

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 26 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के कानूनों में बड़े बदलाव किए। इसने राज्य के 12 पुराने कानून खत्म कर दिए। 14 कानूनों में बदलाव किया। दरअसल, भारत के लिए यह फैसला जितना साफ-सुथरा दिख रहा है, वैसा है नहीं। जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोग जमीन की खरीद-फरोख्त कैसे कर सकेंगे? ऐसे समझें।

सुर्खियों में और क्या है...

  • खेती और इससे जुड़े कामकाज के लिए अगर आपने कर्ज लिया है तो सरकार एक्स ग्रेशिया का फायदा नहीं देगी। यानी ब्याज पर ब्याज और साधारण ब्याज के बीच जो अंतर है, वह आपको नहीं मिलेगा।
  • प्रधानमंत्री मोदी 2 दिन के गुजरात दौरे पर हैं। वे शुक्रवार को गांधीनगर से नर्मदा जिले के केवडिया पहुंचे। टूरिज्म से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया। इनमें आरोग्य वन और जंगल पार्क शामिल हैं।
  • भारत में कोरोना के 24 घंटे में 45 से 50 हजार नए केस सामने आ रहे हैं। दूसरी तरफ ताइवान में 200 दिन (12 अप्रैल के बाद) से कोई नया मामला सामने नहीं आया है।
  • केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने न्यूज एजेंसी ANI से कहा, "जो नेता चीन के प्रवक्ता हैं, उन्हें यहां नहीं रहना चाहिए, बल्कि कोई दूसरी जगह तलाशनी चाहिए।"


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Rape at Fortis Hospital, Gurgaon; Earthquake devastation in Turkey; If you do not put a mask in Mumbai, you will have to sweep


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मुझसे तेजस्वी को क्या खतरा होगा, उनके माता-पिता सीएम रहे हैं, मेरी मां आंगनबाड़ी में पढ़ाती हैं

कन्हैया कुमार इस विधानसभा चुनाव मे ज्यादा प्रचार नहीं कर रहे हैं। वो ज्यादातर समय बेगूसराय के अपने घर में रहते हैं और आसपास की कुछ विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने चले जाते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में चर्चा का केंद्र रहे और इस चुनाव में होने वाली चर्चाओं से खुद को बाहर रखने वाले कन्हैया से हमारी मुलाकात बेगूसराय में उनके घर पर हुई। हमने उनसे चुनाव और राजनीति पर सवाल-जवाब किए...

2019 के लोकसभा चुनाव में आप स्टार कैंडिडेट थे, एक साल बाद हो रहे इस विधानसभा चुनाव से आप बाहर क्यों है?

नहीं। चुनाव से हम बाहर नहीं हैं। चुनाव में होने का मतलब उम्मीदवार होना ही नहीं होता है। बतौर मतदाता भी आप चुनाव में होते हैं। हम तो मतदाता से आगे बढ़कर और जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। कई जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। प्रचार कर रहे हैं। जन संपर्क कर रहे हैं। सभाएं कर रहे हैं। पार्टी ने जो जिम्मेदारियां दी हैं, वो निभा रहे हैं।

चुनाव से बाहर रहने से मेरा मतलब है कि आप उतनी रैलियां नहीं कर रहे हैं, जितनी आप कर सकते हैं?

पहले चरण के चुनाव में हमने जरूर कोई बड़ी सभा नहीं की, लेकिन दूसरे चरण और तीसरे चरण की वोटिंग जहां-जहां है, वहां-वहां मेरी कुछ जिम्मेदारियां हैं। ये महागठबंधन के नेताओं के बीच तय हुआ था। बेगूसराय और मधुबनी में नामांकन के वक्त हम थे।

भास्कर इंटरव्यू : पुष्पम प्रिया बोलीं- अगर ये देखना है कि बिहार के नेताओं ने लोकतंत्र को कितना चौपट किया तो एक बार चुनाव लड़िए

महागठबंधन के लिए चुनावी सभा करते कन्हैया कुमार।

अब आप पीएम मोदी को लेकर उतने आक्रामक नहीं रहते जितना पहले रहा करते थे, इसकी कोई खास वजह?

राजनीति अगर मैथमेटिक्स होती तो दुनिया के सभी विश्वविद्यालयों में पॉलिटिकल साइंस का विभाग बंद करके उसे मैथमेटिक्स डिपार्टमेंट में ही पढ़ाया जाता, लेकिन ऐसा है नहीं। ऐसा कोई कैलकुलेशन हम नहीं करते हैं। बिहार में एक कहावत है कि हंसुआ के बियाह में खुरपी का गीत नहीं गाना चाहिए।

महागठबंधन की लड़ाई सीधे तौर पर NDA से है, केवल भाजपा से तो है नहीं। यहां NDA में जदयू शामिल है। नीतीश जी राज्य में सरकार का चेहरा हैं। ऐसे में उन्होंने पिछले पंद्रह साल में क्या किया है, इसको लेकर ही बात होगी।

लोग कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में तेजस्वी की वजह से ही आप महा गठबंधन के उम्मीदवार नहीं बन पाए थे, तेजस्वी को आपसे खतरा है?

देखिए, एक तो हमसे किसी को कोई खतरा नहीं है। हमसे किसी को कैसे खतरा हो सकता है? हम इतने बड़े इंसान हैं ही नहीं कि किसी के लिए खतरा बन सकते हैं। ये तुलना भी संभव नहीं है। हम दो लोग अलग-अलग तरीके से अपना जीवन जी रहे रहे हैं। दोनों की पृष्ठभूमि भी अलग-अलग है। मैं एक ऐसे परिवार से आता हूं, जिसमें कोई राजनीतिक कद वाला व्यक्ति नहीं रहा है।

हमारे पास कोई ऐसा दल नहीं है, जो बिहार में मुख्य विपक्षी पार्टी हो, जिस पार्टी के पास दर्जनों विधायक हों। हां, हम एक ऐसी पार्टी के सदस्य हैं, जिसका इतिहास बहुत स्वर्णिम रहा है। नारंगी और सेब की आपस में तुलना नहीं होनी चाहिए। दोनों के बीच कोई तुलना भी नहीं है, उनके माता-पिता मुख्यमंत्री रहे हैं। मेरी मां आंगनबाड़ी में पढ़ाती हैं।

आपकी इसी पार्टी के बारे में तेजस्वी यादव ने कहा था कि एक जाति की पार्टी है?

ये सवाल तो उनसे पूछा जाना चाहिए। वैसे चुनाव के वक्त लोग बहुत कड़वी-कड़वी बातें कहते भी हैं। मेरा ये मानना है कि चुनाव में भी किसी को लेकर बहुत तीखा हमला नहीं करना चाहिए। दुष्यंत चौटाला का उदाहरण हमारे सामने हैं। वो अपने भाषणों में कहते थे कि भाजपा को यमुना में डुबो देंगे। यमुना से इस तरफ आने नहीं देंगे।

ये सब कहने के बाद वो आज भाजपा के साथ ही सरकार बनाए हुए हैं। यही सब देखते हुए मैं ज्यादा आक्रामक होने से बचता हूं। उस समय सीट नहीं दी थी तो ये उनका राजनीतिक गुणा-भाग होगा। वो ही इस बार गठबंधन में शामिल हुए हैं तो ये भी उन्हीं का गुणा-भाग होगा।

क्या ये चुनाव केवल तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री बनाने का है क्या?

नहीं, चुनाव तो ये पूरे बिहार का है। ये चुनाव बिहार में बदलाव का है। इस बात के संकल्प का है कि बिहार में जात-पात की राजनीति का दी एंड हो गया है। आज कोई भी पार्टी खुले मंच से जाति की बात नहीं कर रही है। इसकी अगली स्टेज ये होनी चाहिए कि धर्म भी नहीं होना चाहिए।

चुनाव में हिंदू-मुसलमान भी नहीं होना चाहिए। हम लोग जितनी भी बातें करते हैं वो जय जवान-जय किसान के दायरे में होती है और वो लोग हर बार हिंदू, मुस्लिम करते हैं। ये बंद होना चाहिए। जनता की लोकतंत्र में आस्था कम हो रही है और ये कम खतरनाक नहीं है।

लालू यादव और तेजस्वी यादव के साथ कन्हैया कुमार। फाइल फोटो

भास्कर इंटरव्यू : बिहार की हर पार्टी में रह चुके पूर्व सीएम जीतन मांझी, दल बदलने पर बोले- बकवास बंद कीजिए

आप कह रहे हैं कि तेजस्वी को अपनी राजनीतिक विरासत का फायदा मिल रहा है?

इसमें कौन सी दो राय है। हरेक को मिलता है। केवल राजनीति में नहीं मिलता है, हर क्षेत्र में मिलता है। फिल्मों में अभिषेक बच्चन को अमिताभ बच्चन के नाम का फायदा तो मिला ही ना।

इसका मतलब है कि कन्हैया कुमार परिवारवाद का समर्थन कर रहे हैं?

नहीं। परिवारवाद हमारे समाज की हकीकत है। क्या अभिषेक बच्चन, नवाजुद्दीन सिद्दकी को खड़ा होने से रोक पाए? मनोज वाजपेयी को खड़ा होने से रोक पाए? इसका मतलब हुआ कि परिवारवाद उसे नहीं रोक सकता, जिसमें क्षमता होगी।

2019 में चुनाव हारने के बाद आप गायब हो गए, बेगूसराय छोड़ दिया, यहां तक की लॉकडाउन के दौरान भी आप किसी को नहीं दिखे?

अपने मुंह मियां मिट्ठू कैसे बनें। आप मेरे क्षेत्र में घूमकर देख लीजिए। अगर कोई भी राजनीतिक गतिविधि होती है तो हम या हमारे कार्यकर्ता वहां रहते हैं। लॉकडाउन में भी लोगों के बीच ही रहा हूं। हां, मैं हेल्प करते हुए अपनी फोटो सोशल मीडिया पर नहीं डालता हूं। ये ठीक नहीं लगता है। लॉकडाउन के दौरान हमने कोई परहेज नहीं किया। हमने हर पार्टी से मदद मांगी। बिना ये देखे कि कौन बेगूसराय का है और कौन नहीं, सबकी मदद करने की कोशिश की।



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What will be the danger to Tejashwi Yadav from me, his parents have been CM, my mother teaches in Anganwadi


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लड़की ने इनकार क्या किया, मर्द का इगो सांप जैसा फुफकारता है, फिर उसे कुचलने की कवायद शुरू होती है

हाल ही में हरियाणा में एक लड़की को सरेबाजार गोली मार दी गई। वजह- लड़की ने युवक का प्रेम-निवेदन अस्वीकार कर दिया था। निकिता, जो IAS बनने का ख्वाब देख रही थी, उसके ख्वाब को तौफीक ने भरी सड़क बेरहमी से कुचल दिया।

तौफीक के एकतरफा प्यार के बारे में दोनों का ही पूरा घर जानता था, लेकिन किसी ने तौफीक को भरे बाजार बेइज्जत नहीं किया, कस के तमाचा मारना तो दूर की बात है। निकिता अकेली नहीं। ऐसी हजारों-लाखों लड़कियां रोज सड़क पर इस खतरे के साथ निकलती हैं कि कहीं किसी मर्द की नजर उन पर पड़े और वो उसे पसंद न कर ले।

पसंद करते ही शुरू होता है इजहार और इनकार का खेल। लड़की ने जरा इनकार क्या किया, मर्दों का इगो कांच की तरह झन्न करके टूट जाएगा। आखिर वो खुद को समझती क्या है? ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं? चोटिल इगो को मर्द के यार-दोस्त और उकसाते हैं।

अरे, कहीं किसी और के साथ तो लफड़ा नहीं चल रहा! कल खूब बन-ठनकर कहीं गई थी। इगो सांप की तरह फुफकार मारता है और फिर लड़की को कुचलने की तमाम कवायद चल पड़ती है। जिस चेहरे पर इतरा रही है, उसे ही खत्म कर देते हैं।

कहीं की न रहेगी और ये लीजिए, तुरंत एसिड की बोतल आपके हाथ में आ जाती है। जिस शरीर को इतना सहेज रही है, उसे ही रौंद देते हैं। कहीं की न रहेगी और फिर होता है गैंगरेप। पसंद करने वाला मर्द दावत की तरह उसे अपने साथियों में भी परोसता है। चटखारे लेकर लड़की को भोगते हुए वो भूल जाता है कि कल ही तो वो इसी लड़की को दिलोजान से चाहने के दावे कर रहा था।

ये क्या है मर्दों? दफ्तर में अपने पुरुष बॉस से एक छुट्टी के लिए लताड़ सुनने पर तो आपका इगो नहीं भचकता। बाप की डांट पर उसे मारने की साजिश तो नहीं रचते। दोस्तों के मजाक पर उन्हें डसने को नहीं दौड़ते। यहां तक कि सड़क पर गलत साइड चलने पर गाली किसी अनजान पुरुष मुख से उचारी जाए तो भी आपकी जान नहीं निकलती। फिर ये लड़कियों के साथ क्या मसला है बॉस?

मर्द, तुम मन के कैसे-कैसे मैल दिखला रहे हो? राजनीति न हुई, मानो मर्द जाति की व्‍यक्तिगत बिसात हो गई

क्या लड़कियां सड़क पर निकलते ही किसी मर्द की जागीर बन जाती हैं? या फिर ये आपके नाजुक कानों का नुक्स है, जो केवल हां ही सुन पाता है। विज्ञान की छात्रा होने के नाते इतना खूब समझती हूं कि मर्द या औरत किसी के कान में ऐसा कोई फिल्टर नहीं, जो न को बाहर ही छानकर रख दे। फिर लड़की की न में आखिर ऐसा क्या है जो आप इतना तनफना जाते हैं।

दफ्तर में एक लड़की को अक्सर एक चेहरा एकटक लगाए देखता दिखता था। लड़की को लगा भौंहों और माथे पर सिकुड़नें उसकी 'न' को समझाने के लिए काफी होंगी, लेकिन उतना काफी नहीं होता, ये लड़कियां क्यों नहीं समझतीं। आंखें ही क्यों नहीं नोच लेती पहली दफा में।

वैसे इनकार न सुन पाना अकेले हिंदुस्तानी मर्दों की बपौती नहीं। साल 2014 में कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में इलियट रोजर नाम के युवक ने 6 औरतों को गोलियों से भून दिया और 14 को घायल कर दिया। पकड़े जाने के बाद युवक ने माना कि जितना मुमकिन हो, वो उतनी औरतों को मारना चाहता है। औरतों की भूल भी कोई छोटी-मोटी नहीं, काफी गंभीर है, कई औरतों ने इलियट को रिजेक्ट कर दिया था।

रिजेक्शन झेल रहे बेचारे मर्दों की एक ऑनलाइन बिरादरी भी बन चुकी है, जिसमें वे औरतों से बदला लेने के तरीके डिस्कस करते हैं। इंसेल नाम की इस बिरादरी के मायने हैं- अनचाहे ही कुंवारा रह जाना। इससे जुड़े पुरुषों की जिंदगी में कोई लड़की प्रेमिका या सेक्स पार्टनर बनकर नहीं आई। लिहाजा, गुस्साए मर्दों ने उनके खिलाफ अभियान चला डाला।

मर्द कहते हैं कि औरतें बेहद छिछली होती हैं और अच्छी कद-काठी या पैसों पर मरती हैं। उन्हें चमकते दिल से कोई सरोकार नहीं। क्या सचमुच! आप मर्द इतना ही चमकीला दिल रखते हैं? और यकीन जानो लड़कियों, थोड़ी गलती तो तुम्हारी भी है। सड़क पर जैसे ही लड़के ने तुम्हें अपनी जागीर क्लेम किया, सहमकर उसे टालने की बजाए पलटकर एक तमाचा जमा देती तो हाल-ए-किस्मत ऐसी न होती।

याद है वो दिन, जब तुम्हारे ट्यूशन से बाहर निकलते ही लड़कों का एक ग्रुप ठहाका मारते हुए हंसने लगा था। तेज-तेज पैडल मारते हुए घर भागने की बजाए रुक जाती। आंखों में आंखें डालकर उन लड़कों को दो तमाचे रसीद कर देतीं, तो कॉलेज या दफ्तर जाते हुए चाकुओं से न गोदी जातीं।

बेचारी लड़की करे क्या। किसी शहर में किसी मर्द ने कसकर चूम लिया। लड़की रो पड़ी तो लड़के ने हैरत से पूछा- अरे, तुम ही तो हंसकर बात करती थीं। हंसकर बात तो मैं कबाड़ लेने वाले, भाजीवाले, पार्लर में बाल काटने वाले और वॉक पर रोज दिखने वालों से भी करती हूं, तो क्या सबको चूमने का लाइसेंस मिल गया?

बेचारे मर्द भी क्या करें। जिम्मेदारी सिर पड़ी तो निभाएंगे ही। लिहाजा, सड़क पर चलती जिस लड़की पर आंखें दो घड़ी टिक जाएं, उसे ही प्रपोज करने को तुल जाते हैं। साथ में कृतार्थ करने का भाव। मैंने पसंद किया तो हां तो बोलेगी ही। इस डर में कि चेहरा और होंठ और छातियां एसिड से नहीं झुलसेंगी, अगर केवल मुंडी हिलाते हुए हां कह देतीं हैं।

क्या ये तस्वीर कुछ और नहीं होती अगर हम अपने बेटों को मांसपेशियों की ताकत के साथ न सुनने की शक्ति भी देते। मर्दाना बनाते हुए उन्हें थोड़ा-सा जनाना भी बना पाते। उन्हें घुट्टी में ये पिलाकर कि 'न' शब्द तुम्हारे लिए भी बना है बरखुरदार।

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What does the girl deny, Iago of men hears like a snake and then there is a lot of exercise to crush him.


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मुंबई में गार्ड को देख तय किया, गांव लौट खेती करूंगा; अब सालाना टर्नओवर 25 लाख रुपए

औरंगाबाद के बरौली गांव के रहने वाले अभिषेक कुमार मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थे। अच्छी-खासी सैलरी थी। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक उन्होंने शहर से गांव लौटकर खेती करने का प्लान बनाया। 2011 में गांव लौट आए। आज वो 20 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। धान, गेहूं, लेमन ग्रास और सब्जियों की खेती कर रहे हैं। दो लाख से ज्यादा किसान देशभर में उनसे जुड़े हैं। सालाना 25 लाख रुपए का टर्नओवर है।

33 साल के अभिषेक की पढ़ाई नेतरहाट स्कूल से हुई। उसके बाद उन्होंने पुणे से एमबीए किया। 2007 में HDFC बैंक में नौकरी लग गई। यहां उन्होंने 2 साल काम किया। इसके बाद वे मुंबई चले गए। वहां उन्होंने एक टूरिज्म कंपनी में 11 लाख के पैकेज पर बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर ज्वाइन किया। करीब एक साल तक यहां भी काम किया।

2016 में पीएम मोदी ने अभिषेक को कृषि रत्न सम्मान से नवाजा था।

अभिषेक कहते हैं, 'मुंबई में काम करने के दौरान मैं वहां की कंपनियों में तैनात सिक्योरिटी गार्ड से मिलता था। वे अच्छे घर से थे, उनके पास जमीन भी थी, लेकिन रोजगार के लिए गांव से सैकड़ों किमी दूर वे यहां जैसे-तैसे गुजारा कर रहे थे। उनकी हालत देखकर अक्सर मैं सोचता था कि कुछ करूं ताकि ऐसे लोगों को गांव से पलायन नहीं करना पड़े।

वो कहते हैं, '2011 में मैं गांव आ गया। पहले तो परिवार की तरफ से मेरे फैसले का विरोध हुआ। घरवालों का कहना था कि अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर गांव लौटना ठीक नहीं है। गांव के लोगों ने मजाक उड़ाया कि पढ़-लिखकर खेती करने आया है, लेकिन मैं तय कर चुका था। मैंने पिता जी से कहा कि एक मौका तो दीजिए, फिर उसके बाद जो होगा वो मेरी जिम्मेदारी होगी।'

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अभिषेक का फैमिली बैकग्राउंड खेती रहा है। उनके दादा और पिता खेती करते थे। खेती की बेसिक चीजें उन्हें पहले से पता थीं। कुछ जानकारी उन्होंने फार्मिंग से जुड़े लोगों से और कुछ गूगल की मदद से जुटाई। उन्होंने एक एकड़ जमीन से खेती की शुरुआत की।

पहली बार एक लाख की लागत से जरबेरा फूल लगाया। इससे पहले ही साल चार लाख की कमाई हुई। इसके बाद उन्होंने लेमन ग्रास, रजनीगंधा, मशरूम, सब्जियां, गेहूं जैसी दर्जनों फसलों की खेती शुरू की।

अभिषेक ने 2011 में खेती शुरू की। उनके साथ देश के 2 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हैं।

आज अभिषेक 20 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं। 500 से ज्यादा लोगों को उन्होंने रोजगार दिया है। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। बिहार सरकार की तरफ से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने तेतर नाम से एक ग्रीन टी की किस्म तैयार की है। जिसका पेटेंट उनके नाम पर है। इस चाय की काफी डिमांड है। पूरे भारत में इसके ग्राहक हैं।

अभिषेक के लिए यह सफर आसान नहीं रहा है, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। 2011 में ही वो सड़क हादसे का शिकार हो गए थे। इसके बाद बैसाखी के सहारे कई महीनों तक उन्हें चलना पड़ा था। वो कहते हैं- खेती को लाभ का जरिया बनाया जा सकता है। इसके लिए बेहतर प्लानिंग और अप्रोच की जरूरत है।

जो टमाटर सीजन में 2 रुपए किलो बिक रहा है, उसे ऑफ सीजन में बेचा जाए तो 50 रुपए से ज्यादा के भाव से बिकेगा। इतना ही नहीं अगर उसे प्रोसेसिंग करके स्टोर कर लिया जाए तो अच्छी कीमत पर ऑफ सीजन में बेचा जा सकता है।

वो बताते हैं कि रजनीगंधा की खेती काफी फायदेमंद है। रजनीगंधा की पूरे देशभर में काफी डिमांड है। एक हेक्टेयर में रजनीगंधा फूल की खेती करने में लागत करीब डेढ़ लाख रुपए आएगी। इससे एक साल में पांच लाख तक की आमदनी हो सकती है।

अभिषेक कहते हैं कि खेती को लाभ का जरिया बनाया जा सकता है। इसके लिए बेहतर प्लानिंग और अप्रोच की जरूरत है।

79 साल की उम्र में शुरू किया चाय मसाले का बिजनेस, रोज मिल रहे 800 ऑर्डर, वॉट्सऐप ग्रुप से की थी शुरुआत

अच्छी खेती के लिए जरूरी स्टेप्स
1. क्लाइमेट कंडीशन :
हम जहां भी खेती शुरू करने जा रहे हैं, वहां के मौसम के बारे में अध्ययन करना चाहिए। उस जमीन पर कौन-कौन सी फसलें हो सकती हैं, इसके बारे में जानकारी जुटानी चाहिए।
2. स्टोरेज : प्रोडक्ट तैयार होने के बाद हमें उसे स्टोर करने की व्यवस्था करनी होगी ताकि ऑफ सीजन के लिए हम उसे सुरक्षित रख सकें।
3. मार्केटिंग और पैकेजिंग : यह सबसे अहम स्टेप हैं। प्रोडक्ट तैयार करने के बाद हम उसे कहां, बेचेंगे, उसकी जगह के बारे में जानकारी जरूरी है। इसके लिए सबसे बेहतर तरीका है, वहां की लोकल मंडियों में जाना, लोगों से बात करना और डिमांड के हिसाब से समय पर प्रोडक्ट पहुंचना। इसके अलावा सोशल मीडिया भी मार्केटिंग में अहम रोल प्ले करता है।

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औरंगाबाद के बरौली गांव के रहने वाले अभिषेक कुमार को खेती के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं।


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अब आप-हम भी खरीद सकते हैं कश्मीर में जमीन; आइए समझते हैं कैसे?

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 26 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के कानूनों में बड़े बदलाव किए। पिछले साल 5 अगस्त को बने इस नए केंद्र शासित प्रदेश के लिए पांचवां ऑर्डर जारी किया। इसने राज्य के 12 पुराने कानून खत्म कर दिए। साथ ही 14 कानूनों में बदलाव किया।

पूरे देश में इस फैसले को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की सफलता माना जा रहा है, वहीं कुछ लोग जम्मू-कश्मीर के ऐतिहासिक जमीन सुधार कानून को रद्द करने की आलोचना भी कर रहे हैं। दरअसल, पूरे भारत के लिए यह फैसला जितना साफ-सुथरा दिख रहा है, वह वैसा है नहीं। इससे जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोगों को भी जमीन की खरीद-फरोख्त करने का अधिकार मिल गया है।

गृह मंत्रालय का आदेश क्या है?

  • केंद्र सरकार ने पिछले साल संविधान के आर्टिकल 370 और 35A को रद्द किया और जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाया था। आर्टिकल 35A यह गारंटी देता था कि राज्य की जमीन पर सिर्फ उसके स्थायी निवासियों का हक है। अब आर्टिकल 35A तो रहा नहीं, लिहाजा नए आदेश से जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने का रास्ता सबके लिए खुल गया।
  • जम्मू-कश्मीर के चार कानून ऐसे थे, जो स्थायी निवासियों यानी परमानेंट रेसिडेंट्स के हाथ में राज्य की जमीन सुरक्षित रखते थे। ये थे जम्मू-कश्मीर एलिनेशन ऑफ लैंड एक्ट 1938, बिग लैंडेड एस्टेट्स अबॉलिशन एक्ट 1950, जम्मू-कश्मीर लैंड ग्रांट्स एक्ट 1960 और जम्मू एंड कश्मीर एग्रेरियन रिफॉर्म्स एक्ट 1976। इनमें से पहले दो कानून रद्द हो गए हैं। बचे दोनों कानूनों में जमीन को लीज पर देने और ट्रांसफर करने से जुड़ी शर्तों में परमानेंट रेसिडेंट वाला क्लॉज हटा दिया है।

क्या कोई भी भारतीय जम्मू-कश्मीर में किसी भी जमीन को खरीद सकेगा?

  • नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं है। कुछ जगह पाबंदियां अब भी लागू रहेंगी। जैसा कि जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ किया कि खेती की जमीन बाहरी लोग नहीं खरीद सकेंगे। कानून में बदलाव का उद्देश्य निवेश बढ़ाना है। खेती की जमीन सिर्फ किसानों के पास ही रहेगी।
  • बाहरी व्यक्ति जम्मू-कश्मीर में खेती को छोड़कर कोई भी जमीन खरीद सकेंगे। इसी तरह डेवलपमेंट अथॉरिटी अब केंद्रीय कानून के तहत जमीन का अधिग्रहण करेगी और तब लीज पर देने या अलॉट करने के लिए परमानेंट रेसिडेंट का नियम आवश्यक नहीं रहेगा।
  • इसी तरह डेवलपमेंट एक्ट के तहत जम्मू-कश्मीर इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन औद्योगिक क्षेत्रों में तेजी से उद्योग लगाने और उनके लिए कमर्शियल सेंटर बनाने पर काम करेगा। औद्योगिक संपत्तियों को मैनेज करेगा और सरकार के नोटिफाइड इंडस्ट्रियल एरिया को डेवलप करेगा।

सेनाओं के लिए क्या कोई विशेष प्रावधान रखा है?

  • हां। हम सभी जानते हैं कि कश्मीर में सेना का डिप्लॉयमेंट और उसके लिए जमीन कितनी जरूरी है। इसके लिए डेवलपमेंट एक्ट में महत्वपूर्ण बदलाव किया है और यह आर्म्ड फोर्सेस को एनक्लेव बनाने की छूट देता है। यह सरकार को डेवलपमेंट अथॉरिटी की नियंत्रित जमीन पर स्ट्रैटेजिक एरिया तय करने का अधिकार देता है। इस क्षेत्र को सेना की डायरेक्टर ऑपरेशनल और ट्रेनिंग जरूरतों के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। कॉर्प कमांडर रैंक के अफसर भी इस बदलाव के लिए लिखित अनुरोध कर सकेंगे।

क्या कमजोर तबके के घरों को कोई भी खरीद सकेगा?

  • अब तक डेवलपमेंट एक्ट में लो-कॉस्ट हाउसिंग का नियम सिर्फ जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों में से आर्थिक रूप से कमजोर तबकों और कम आय वाले समूहों के लिए था। नया बदलाव देशभर के किसी भी इलाके के आर्थिक कमजोर तबके और कम आय वाले समूह को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने या घर बनाने की इजाजत देता है।
  • यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि हाल ही में केंद्र शासित प्रदेश सरकार ने नई हाउसिंग पॉलिसी घोषित की है और पांच साल में वह एक लाख यूनिट्स बनाने वाली है। अफोर्डेबल हाउसिंग और स्लम एरिया डेवलपमेंट स्कीम के तहत पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप को बढ़ावा दिया जा रहा है।

तो क्या बाहरी लोगों को खेती की जमीन मिलेगी ही नहीं?

  • वैसे तो नए कानून में खेती की जमीन उसे नहीं बेच सकते जो किसान नहीं है। लेकिन, इसमें प्रावधान है कि सरकार या उसकी ओर से नियुक्त एक अधिकारी खेती की जमीन ऐसे व्यक्ति को बेचने, उपहार देने, एक्सचेंज या गिरवी रखने की मंजूरी दे सकता है। यहां जो व्यक्ति खरीद रहा है, उसके पास जम्मू-कश्मीर का स्थायी या मूल निवासी प्रमाण पत्र होना आवश्यक नहीं है। पहले तो लैंड यूज बदलने का अधिकार राजस्व मंत्री के पास था, अब कलेक्टर भी यह कर सकेगा।

केंद्र के आदेश को इतिहास पर हमला क्यों बोला जा रहा है?

  • गृह मंत्रालय के आदेश ने 70 साल पुराने जमीन सुधार कानून को खत्म कर दिया है। नया कश्मीर मेनिफेस्टो के तहत जागीरदारी प्रथा खत्म की गई थी। 1950 के बिग लैंडेड एस्टेट्स अबॉलिशन एक्ट में लैंड सीलिंग 22.75 एकड़ तय की गई थी। जिसके पास ज्यादा जमीन थी, उसकी जमीन भूमिहीनों में बांट दी गई थी। इसी तरह जम्मू-कश्मीर एग्रेरियन रिफॉर्म्स एक्ट में यह लैंड सीलिंग घटाकर 12.5 एकड़ कर दी गई थी। इस कानून को रद्द करने की वजह से ही जम्मू-कश्मीर के साथ ही देश के कई एक्सपर्ट कह रहे हैं कि यह कश्मीर के इतिहास पर बड़ा हमला है।

क्या यह बदलाव लद्दाख में भी लागू होंगे?

  • फिलहाल केंद्र सरकार के फैसले सिर्फ जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे, लद्दाख पर नहीं। लद्दाख पहले जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा था, लेकिन अब वह भी एक स्वतंत्र केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है। लद्दाख में भी आर्टिकल 35A लागू था और वहां भी जमीन पर परमानेंट रेसिडेंट्स का ही अधिकार है। केंद्र सरकार ने कहा है कि वह लद्दाख को लेकर इस मसले पर डिस्कशन को तैयार है।


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Jammu and Kashmir Latest News Update | Centre Amends Land Laws in J&K | If You are an Indian then You can Buy a Piece of Land in Kashmir


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इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद के भयावह 12 घंटे; सरदार पटेल का जन्मदिन भी

इतिहास में आज के दिन से अच्छी और बुरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं। एक तो भारत को आकार देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन है। वहीं, आयरन लेडी यानी इंदिरा गांधी की हत्या का दिन भी यही है।

बात 36 साल पुरानी है। 1984 में 30 अक्टूबर को ओडिशा में चुनाव प्रचार से उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली लौटी थीं। उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव आए हुए थे। 31 अक्टूबर को मुलाकात का वक्त तय था। सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर इंटरव्यू की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इंदिरा बाहर निकलीं। सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह स्टेनगन लेकर खड़ा था।

इंदिरा ने आगे बढ़कर बेअंत और सतवंत को नमस्ते कहा। इतने में बेअंत ने .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर तीन गोलियां दाग दीं। सतवंत ने भी स्टेनगन से गोलियां दागनी शुरू कर दीं। एक मिनट से कम वक्त में स्टेनगन की 30 गोलियों की मैगजीन खाली कर दी। साथ वाले लोग तो कुछ समझ नहीं सके। उस समय पीएम आवास पर खड़ी एंबुलेंस का ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था। कार से इंदिरा गांधी को एम्स ले गए। शरीर से लगातार खून बह रहा था।

एम्स के डॉक्टर सक्रिय हुए। खून बहने से रोकने की कोशिश की। बाहर से सपोर्ट दिया गया। 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया। राजीव गांधी भी तब तक दिल्ली पहुंच गए थे। दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर औपचारिक रूप से इंदिरा गांधी की मौत की घोषणा हुई। उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं।

एम्स में सैकड़ों लोग जुटे थे। धीरे-धीरे यह खबर भी फैल गई कि इंदिरा गांधी को दो सिखों ने गोली मारी है। इससे माहौल बदलने लगा। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव हुआ। शाम को अस्पताल से लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी। धीरे-धीरे दिल्ली सिख दंगों की आग में झुलस गई थी। रात होते-होते तो देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए।

हत्या का कारणः पंजाब में सिख आतंकवाद को दबाने के लिए इंदिरा ने 5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। इसमें प्रमुख आतंकी भिंडरावाला सहित कई की मौत हो गई। ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को क्षति पहुंची। इससे सिख समुदाय में एक तबका इंदिरा से नाराज हो गया था। इंदिरा के दो हत्यारों को 6 जनवरी 1989 को फांसी पर चढ़ाया गया था।

गुजरात में देश के सरदार का जन्म

महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार पटेल।

वल्लभ भाई पटेल को भारत का लौह पुरुष भी कहते हैं और सरदार भी। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में उनका जन्म हुआ था और उन्होंने अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली। सरदार पटेल का जन्म किसान परिवार में हुआ, लेकिन उन्हें कूटनीतिक क्षमताओं के लिए जाना जाता है। आजाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है।

आज 10वीं की परीक्षा आम तौर पर 16 साल में पास हो जाती है, लेकिन सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। परिवार में आर्थिक तंगी थी और इस वजह से वो कॉलेज जाने के बजाय जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी में जुट गए। सबसे ज्यादा अंक भी हासिल किए। 36 साल की उम्र में वल्लभ भाई वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए। कॉलेज का अनुभव नहीं था, फिर 36 महीने का कोर्स सिर्फ 30 महीने में पूरा किया।

देश आजाद हुआ, तब पटेल प्रधानमंत्री पद के तगड़े दावेदार थे, लेकिन उन्होंने नेहरू के लिए यह पद छोड़ दिया। खुद उप-प्रधानमंत्री बने और ऐसा काम किया कि सदियों तक याद रखे जाएंगे। उन्होंने पाकिस्तान में जाने का मन बना रही जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों को कूटनीति से भारत में ही रोक लिया। जम्मू-कश्मीर आज भारत में है, तो उसका श्रेय भी कुछ हद तक पटेल को जाता है।

गुजरात के सरदार सरोवर डैम के पास दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति- स्टेच्यू ऑफ यूनिटी है, जो सरदार पटेल की याद में बनाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर 2018 को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को लॉन्च किया था।

भारत और विश्व इतिहास में 31 अक्टूबर की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं-

  • 1759ः फिलीस्तीन के साफेद में भूकंप से 100 लोग मारे गए।
  • 1864ः नेवादा अमेरिका का 36वां प्रांत बना।
  • 1905ः अमेरिका के सेंट पीटर्सबर्ग में क्रांतिकारी प्रदर्शन।
  • 1914ः ब्रिटेन तथा फ्रांस ने तुर्की के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
  • 1920ः मध्य यूरोपीय देश रोमानिया ने पूर्वी यूरोप के बेसाराबिया पर कब्जा किया।
  • 1943ः भारतीय वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर का जन्म हुआ।
  • 1953ः बेल्जियम में टेलीविजन का प्रसारण शुरू हुआ।
  • 1956ः स्वेज नहर को फिर से खोलने के लिए ब्रिटेन तथा फ्रांस ने मिस्र पर बमबारी शुरू की।
  • 1966ः भारत के मशहूर तैराक मिहिर सेन ने पनामा नहर को तैरकर पार किया।
  • 1975ः बांग्ला और हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक सचिन देव बर्मन का निधन।
  • 1978ः यमन ने अपना संविधान अपनाया।
  • 1999ः इजिप्टएयर फ्लाइट 990 अमेरिका के पूर्वी तट पर क्रैश हुई और 217 की मौत हुई।
  • 2005ः भारत की प्रसिद्ध पंजाबी एवं हिन्दी लेखिका अमृता प्रीतम का निधन हुआ।
  • 2011: दुनिया की आबादी औपचारिक रूप से 7 अरब हुई। यूएन पापुलेशन फंड ने इस दिन को डे ऑफ सेवन बिलियन कहा।
  • 2015ः रूसी एयरलाइन कोगलीमाविया का विमान-9268 उत्तरी सिनाई में दुर्घटनाग्रस्त होने से विमान में सवार सभी 224 लोगों की मौत।


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Today History for October 31st/ What Happened Today | Indira Gandhi Shot Dead By Her Bodyguards In 1984 All You Need To Know | Sardar Vallabh Bhai Patel Birthday


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बच्चों पर रिजल्ट का बोझ न डालें, दूर की सोचने को कहें; जानिए मोटिवेशन के क्या फायदे हैं

​​​​लीसा डैमऑर. कोरोना के चलते इस साल बच्चों की पढ़ाई आधी-अधूरी ही हुई है। बच्चे करीब 8 महीने से घर पर ही हैं। बच्चों का एकेडमिक मोटिवेशन लेवल बहुत कम हो गया है। अब जरूरत उन्हें नए तरीके से मोटिवेट करने की है, लेकिन क्या आप उन्हें ज्यादा पढ़ाई और ज्यादा नंबर लाने के लिए मोटिवेट करने वाले हैं? यदि हां तो ऐसा बिल्कुल मत करिएगा, क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना की वजह से जीने का तौर-तरीका बदला है। आप भी खुद को बदलें। परंपरागत तौर-तरीकों से बाहर आएं। बच्चों की सोच को समझने की कोशिश करें।

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, मोटिवेशन दो तरीके के होते हैं। पहला आंतरिक (Internal) और दूसरा बाहरी (External)। जानते हैं कि दोनों क्या हैं-

  1. इंटरनल मोटिवेशन से किसी काम को करने में हमें ज्यादा मजा आता है। काम के बाद संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा सीखने की हमारी ललक और ज्यादा बढ़ जाती है।
  2. एक्सटर्नल मोटिवेशन से किसी काम में हमारा आउटकम यानी परिणाम बेहतर होता है। जैसे- जब हम किसी परीक्षा से पहले कड़ी मेहनत करते हैं और नंबर अच्छा आ जाते हैं तो उसके पीछे हमारी एक्सटर्नल मोटिवेशन होती है।

यह भी पढ़ें- महामारी के बाद हम खुद को नहीं बदल रहे, इसलिए तनाव में; 4 तरीकों से खुद को मोटिवेट करें...

बच्चों पर रिजल्ट का बोझ कैसे कम करें?

  • पढ़ाई में हमारी मोटिवेशन ज्यादातर मौकों पर इंटरनल होनी चाहिए, न कि एक्सटर्नल। इंटरनल मोटिवेशन हमें बड़े और मजबूत लक्ष्य तक ले जाती है। इससे हमारा रहन-सहन भी बेहतर होता है। हालांकि, हमेशा हम सिर्फ इंटरनल रूप से मोटिवेट नहीं हो सकते हैं।
  • रोजमर्रा की जिंदगी में हम ज्यादातर मौकों पर रिजल्ट ओरिएंटेड हो जाते हैं, यानी हम नतीजे तलाशने लगते हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि युवाओं में सबसे ज्यादा इंटरनल मोटिवेशन की कमी देखी जाती है। पैरेंट्स बच्चों को तो सिर्फ रिजल्ट के बारे में ही बताते हैं। इसलिए बच्चे रिजल्ट से ही खुद की काबिलियत को आंकते हैं और रिजल्ट के बारे में सोचते हैं।
  • कोरोना की वजह से स्कूल न जाने से भी बच्चों में एंग्जाइटी और तनाव देखा जा सकता है। इसलिए बाहरी चीजों से प्रेरित बच्चों को इंटरनल तौर पर मोटिवेट करने की कोशिश करें। उनके बेहतर भविष्य के लिए उन्हें रिजल्ट के बोझ से मुक्त करें।

पैरेंट्स बच्चों को कैसे मोटिवेट करें?

  • इंटरनल मोटिवेशन कई मौकों पर बहुत मददगार होती है। हर पैरेंट्स को अपने बच्चों को आंतरिक तौर पर प्रेरित करना चाहिए। जिंदगी में कई मौके ऐसे आते हैं, जब हम असफल होते हैं, उस वक्त हम इंटरनल मोटिवेशन से अगले मौके के लिए तैयार हो सकते हैं।
  • जब हम जरूरत से ज्यादा रिजल्ट ओरिएंटेड होते हैं और असफलता मिल जाती है तो तनाव में आ जाते हैं। कोरोना के दौर में स्कूल से दूर हो चुके बच्चों को आप इंटरनल मोटिवेशन के बारे में बताएं।


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There are two motivations| wrong motivation can cause depression to the child| know how to motive|


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बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव ने वोट के बदले बांटे नोट, जानें वायरल वीडियो का सच

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें बिहार चुनाव में RJD से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। वीडियो बिहार चुनाव प्रचार का ही बताया जा रहा है।

और सच क्या है ?

  • वायरल वीडियो में तेजस्वी मास्क लगाए दिख रहे हैं। साफ है कि वीडियो कोरोना काल का ही है यानी ज्यादा पुराना नहीं है।
  • अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि तेजस्वी यादव बिहार चुनाव प्रचार में वोटरों को नोट बांटते देखे गए हैं।
  • पड़ताल के दौरान हमें तेजस्वी यादव के 31 जुलाई के ट्वीट में वायरल वीडियो से मिलता-जुलता एक वीडियो मिला। इस वीडियो में भी तेजस्वी लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। यहां से हमें क्लू मिला कि वायरल वीडियो इसी साल बिहार में आई बाढ़ का हो सकता है।
  • दैनिक भास्कर वेबसाइट पर 22 जुलाई, 2020 की एक खबर है। जिससे पता चलता है कि तेजस्वी यादव ने बाढ़ पीड़ितों के भोजन की व्यवस्था की थी।
  • हमें नवभारत टाइम्स वेबसाइट पर 31 जुलाई, 2020 की रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट में वही वीडियो है जिसमें तेजस्वी लोगों को पैसे बांटते दिख रहे हैं।

  • साफ है कि वायरल वीडियो का बिहार चुनाव से कोई संबंध नहीं है। 3 महीने पुराने वीडियो में तेजस्वी बाढ़ पीड़ितों को पैसे बांट रहे हैं। न की वोट के बदले नोट।


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Fact Check: In the midst of Bihar elections, Tejashwi Yadav distributed money? Know the reality of viral video


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15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रु. बढ़ी, पर बिहार में सिर्फ 35 हजार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैलियों में जो शब्द बार-बार सुनाई दे रहा है, वो है ‘15 साल’। नीतीश लोगों को 15 साल पहले के बिहार की तस्वीर दिखा रहे हैं। अपने 15 साल की तुलना लालू के 15 साल से करते हैं। मानो इन सालों में बिहार की कायापलट हो गई हो।

पर, आंकड़े क्या कहते हैं? आंकड़े कहते हैं कि बिहार आज भी देश के बाकी राज्यों से पिछड़ा हुआ है। ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार में आज हर आदमी रोज सिर्फ 120 रुपए ही कमाता है। जबकि, झारखंड का आदमी रोज 220 रुपए तक की कमाई कर रहा। बिहार से 100 रुपए ज्यादा। सिर्फ कमाई ही नहीं, बेरोजगारी के मामले में भी बिहार, झारखंड से कोसों आगे है।

यहां बिहार की तुलना झारखंड से इसलिए, क्योंकि आज भले ही बिहार और झारखंड की पहचान दो अलग-अलग राज्यों की हो, लेकिन 20 साल पहले तक दोनों एक ही तो थे।

आइए 5 पैमानों पर परखते हैं कि नीतीश के 15 सालों में बिहार कितना बदला?

1. पर कैपिटा इनकमः झारखंड से भी पीछे बिहार

इकोनॉमिक सर्वे और RBI के आंकड़े बताते हैं कि 15 साल में बिहार में हर आदमी की कमाई 5 गुना बढ़ी है। नीतीश जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब यहां हर आदमी की सालाना कमाई 7914 रुपए थी। आज 43,822 रुपए है। यानी रोज की कमाई 120 रुपए और महीने की कमाई 3651 रुपए।

इसकी तुलना जब झारखंड से करेंगे, तो यहां बिहार की तुलना में लोगों की कमाई 4 गुना से ज्यादा बढ़ी है। लेकिन, फिर भी झारखंड का आदमी बिहार के आदमी से हर साल डेढ़ गुना से ज्यादा कमाई करता है। झारखंड में हर आदमी की सालाना कमाई 79,873 रुपए है। वहीं, 15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रुपए से ज्यादा बढ़ गई, पर बिहार में सिर्फ 35,000 रुपए।

2.बेरोजगारी दरः झारखंड के मुकाबले बिहार में ज्यादा

देश में बेरोजगारी दर के आंकड़े अब केंद्र सरकार जारी करती है। 2011-12 तक नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी NSSO सर्वे करता था, लेकिन अब पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी PLFS सर्वे होता है। इसका डेटा बताता है कि बिहार और झारखंड ही नहीं, बल्कि देश में ही बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है।

2004-05 बिहार के गांवों में बेरोजगारी दर 1.5% और शहरों में 6.4% थी। अब यहां के गांवों में 10.2% और शहरों में 10.5% बेरोजगारी दर है। बेरोजगारी दर झारखंड और देश में भी बढ़ी है। बिहार के लिए ये इसलिए भी चिंताजनक हो जाती है, क्योंकि यहां की करीब 90% आबादी आज भी गांवों में ही रहती है।

3. गरीबी रेखाः बिहार में आज भी 34% आबादी गरीब

हमारे देश में गरीबी के आंकड़ों का हिसाब-किताब 1956 से रखा जा रहा है। गरीब कौन होगा? इसकी भी परिभाषा है, जो बताती है कि अगर शहर में रहने वाला व्यक्ति हर महीने 1000 रुपए से ज्यादा कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। इसी तरह गांव का व्यक्ति अगर हर महीने 816 रुपए कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा।

नीतीश 15 साल पहले जब सत्ता में आए थे, तब बिहार की 54% से ज्यादा यानी 4.93 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 के हैं। इसके मुताबिक, 2011-12 में बिहार में गरीबी रेखा के नीचे आने वाली आबादी 3.58 करोड़ यानी 33.7% है।

वहीं, बिहार की तुलना में झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे आने वाली आबादी ज्यादा है। झारखंड की अब भी 37% आबादी गरीबी रेखा से नीचे आती है, जबकि देश में ये आंकड़ा 22% का है।

4. GDP: यहां झारखंड के मुकाबले बिहार की हालत बेहतर

15 साल में बिहार की GDP 7.5 गुना बढ़ गई। RBI का डेटा बताता है कि 2005-06 में बिहार की GDP 82 हजार 490 करोड़ रुपए थी, जो 2019-20 में बढ़कर 6.11 लाख करोड़ रुपए हो गई। वहीं, 15 सालों में झारखंड और देश की GDP 5.5 गुना बढ़ी है।

5. क्राइम रेट: अपराध के मामले में झारखंड के मुकाबले बिहार आगे

चाहें प्रधानमंत्री मोदी हों या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों ही कह रहे हैं कि पहले जंगलराज हुआ करता था। उधर, केंद्र सरकार की ही एजेंसी NCRB का डेटा बताता है कि नीतीश सरकार के आने के बाद बिहार में क्राइम बढ़ा है।

NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2005 में बिहार में 1.07 लाख क्रिमिनल केस दर्ज किए गए थे, यानी रोजाना 293 मामले। लेकिन, 2019 में बिहार में 2.69 लाख मामले सामने आए हैं यानी, रोज 737 केस। ये आंकड़े ये भी बताते हैं कि 15 सालों में देश में क्राइम बढ़ा तो था, लेकिन बाद में कम भी होने लगा, लेकिन बिहार और झारखंड में लगातार केस बढ़ रहे हैं।



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Nitish Kumar Government 15 Years Vs Tejashwi Yadav: Bihar Election 2020 | Bihar Per Capita Income | Bihar Crime Rate - Here's Latest News Updates


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21 में से 17 प्रोजेक्ट पूरे, पटेल की प्रतिमा के हावभाव के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च हुई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के निर्माण का काम सिर्फ 33 महीनों में हो गया था। सरदार पटेल की यह प्रतिमा (182 मीटर) दुनिया में सबसे ऊंची है। 2010 में मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री इसे स्थापित करने का ऐलान किया था। 2013 में प्रतिमा के निर्माण का काम शुरू हुआ था।

काम कितना अहम था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पटेल की प्रतिमा के हावभाव तय करने के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च की गई थी।स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से जुड़े 21 प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे। इनमें से 17 अब तक पूरे हो चुके हैं।

हालांकि, इनमें से 2 में काम बाकी है और 2 की जानकारी नहीं मिल सकी है। 13 का लेखा-जोखा है। सरदार पटेल की प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध शिल्पकार राम सुतार ने डिजाइन की, निर्माण लार्सन एंड टुब्रो कंपनी ने किया। जानिए, क्या है जो 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' को खास बनाता है...

109 टन लोहे का इस्तेमाल किया गया

इस प्रतिमा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए देश भर के पांच लाख से अधिक किसानों के पास से 135 मीट्रिक टन खेती-किसानी के पुराने औजार दान में लिए गए, जिन्हें गलाकर 109 टन लोहा तैयार किया गया। इसी लोहे का उपयोग इस प्रतिमा में किया गया है।

2010 में मोदी ने की थी घोषणा

नरेंद्र मोदी जब गुजरात के सीएम थे, तब 7 अक्टूबर 2010 को अहमदाबाद में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इस स्मारक के निर्माण की घोषणा की थी। इसके बाद 31 अक्टूबर 2013 से प्रतिमा का निर्माण शुरू हुआ, जो पांच साल बाद यानी कि 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल की 143वीं जयंती पर पूरा हुआ। प्रतिमा का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी ने किया।

2.10 लाख क्यूबिक मीटर कन्क्रीट लगा

इस प्रतिमा की लागत 2989 करोड़ रुपए आई। मूर्ति में 2.10 लाख क्यूबिक मीटर सीमेंट-कन्क्रीट और 2000 टन कांसे का उपयोग हुआ है। 6 हजार 500 टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18 हजार 500 टन सरियों का इस्तेमाल किया गया है। यह 12 किमी इलाके में बनाए गए तालाब से घिरी है।

मूर्तिकार राम सुतार ने डिजाइन तैयार किया

'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' की ओरिजनल डिजाइन महाराष्ट्र के राम सुतार ने तैयार की है। 93 साल के सुतार देश के सबसे वरिष्ठ मूर्तिकार हैं। उन्होंने छत्रपति शिवाजी का स्टेच्यू भी डिजाइन किया है। शिवाजी का यह स्टेच्यू मुंबई के समुद्र में कृत्रिम टापू पर स्थापित किया जाना है।

राम सुतार ने इन महान लोगों की मूर्तियां भी बनाईं

राम सुतार ने मिनिमम 18 फीट ऊंची मूर्तियां तैयार कीं। इनमें सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, महाराजा रणजीत सिंह, शहीद भगतसिंह, जयप्रकाश नारायण की मूर्तियां बनाई जा चुकी हैं। उनकी बनाई गांधीजी की मूर्तियां फ्रांस, इटली, अर्जेंटीना, रूस, इंग्लैंड, जर्मनी, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया में भी स्थापित की गई हैं।

अमेरिकी इतिहासकार ने बताया था कैसी होनी चाहिए पटेल की मूर्ति

राम सुतार के बेटे अनिल सुतार ने बताया कि एक अमेरिकी इतिहासकार को सरदार पटेल के नेचर, पहनावे और उनकी पर्सनैलिटी के बारे में अध्ययन करने को कहा गया था। ताकि पता चल सके कि मूर्ति को किस हाव-भाव में तैयार किया जाना है।

इन इतिहासकार ने तमाम मूर्तियां और फोटोज देखीं। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सरदार पटेल का जो स्टेच्यू अहमदाबाद एयरपोर्ट पर है, उसमें सरदार का स्वभाव और वेशभूषा हू-ब-हू नजर आती है। इसलिए 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' भी उसी डिजाइन की होनी चाहिए।

क्यों खास है 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी'

  • प्रतिमा 6.5 तीव्रता के भूकंप के झटके और 220 किमी की स्पीड के तूफान का भी सामना कर सकती है।
  • प्रतिमा के निर्माण में 85% तांबे का उपयोग होने से हजारों साल तक इमसें जंग नहीं लग सकती।
  • प्रतिमा की गैलरी में खड़े होकर एक बार में 40 लोग सरदार सरोवर डैम, विंध्य पर्वत के दर्शन कर सकते हैं।
  • स्टेच्यू में दो हाई-स्पीड लिफ्ट लगाई गई हैं। जो पर्यटकों को सरदार पटेल की मूर्ति के सीने के हिस्से में बनी व्यूइंग गैलरी तक ले जाती हैं। इस गैलरी में एक साथ 200 लोग खड़े रह सकते हैं।
  • स्टेच्यू ऑफ यूनिटी सिर्फ 33 महीनों में तैयार की गई है, जो एक रिकॉर्ड है। जबकि चीन के स्प्रिंग टेंपल में बुद्ध की प्रतिमा के निर्माण में 11 साल लगे थे।
  • स्टेच्यू की डिजाइन में इस बात का खास ध्यान रखा गया कि उसमें हू-ब-हू सरदार पटेल के हावभाव नजर आएं। इसके लिए सरदार पटेल की 2000 से ज्यादा फोटो पर रिसर्च की गई।

यूनिटी के आसपास के अन्य दर्शनीय स्थल

  • विश्व वन: यहां सभी सात खंडों की औषधि वनस्पति, पौधे और वृक्ष हैं, जो अनेकता में एकता के भाव को साकार करते नजर आते हैं।
  • एकता नर्सरी: इसे बनाने का मकसद है कि जब भी पर्यटक यहां आएं तो वे नर्सरी से 'प्लांट ऑफ यूनिटी' के नाम से एक पौधा जरूर ले जाएं। शुरुआती चरण में यहां एक लाख पौधे रोपे गए हैं, जिनमें से 30 हजार पौधे बेचने के लिए तैयार हो चुके हैं।
  • बटरफ्लाई गार्डन: 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' में पर्यटक कुदरत की सुंदर और रंग-बिरंगी रचनाएं भी देख सकें, इसके लिए इस बटरफ्लाई गार्डन का निर्माण किया गया है। करीब छह एकड़ में फैले इस विशाल बगीचे में 45 प्रजातियों की तितलियां हैं।
  • एकता ऑडिटोरियम: करीब 1700 वर्ग मीटर में फैला यह एक कम्युनिटी हॉल है। यहां संगीत, नृत्य, नाटक, कार्यशाला जैसे सभी सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
  • रिवर राफ्टिंग: रिवर राफ्टिंग एक एडवेंचर गेम है। यहां साहसिक खिलाड़ी कई तरह के एडवेंचर गेम का लुत्फ उठा सकेंगे।


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After research on more than 2000 photographs, the facial expression of the Statue of Unity was decided


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