cgh

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा राष्ट्रपति ने मंजूर किया; 3 कृषि विधेयकों पर 4 आशंकाओं के चलते अकाली दल और एनडीए में दरार

कोरोना के बीच संसद के मानसून सत्र का आज पांचवां दिन है। इससे पहले गुरुवार को शिरोमणि अकाली दल की नेता और फूड प्रोसेसिंग मिनिस्टर हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस्तीफा मंजूर कर लिया है। खेती से जुड़े 3 विधेयकों के खिलाफ पंजाब के किसानों का गुस्सा देखते हुए बादल ने इस्तीफे का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि किसानों के साथ उनकी बेटी और बहन के रूप में खड़े होने पर गर्व है।

संसद में पेश कृषि विधेयकों पर एनडीए के सबसे पुराने साथी शिरोमणि अकाली दल की नाराजगी गुरुवार को खुलकर सामने आ गई। लोकसभा में 2 विधेयकों पर चर्चा के दौरान अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने कहा कि उनकी पार्टी विधेयकों के पक्ष में नहीं है। हालांकि, पार्टी का कहना है कि हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बावजूद शिरोमणि अकाली दल का मोदी सरकार को समर्थन जारी रहेगा।

इन 4 आशंकाओं पर कृषि विधेयकों का विरोध

1. क्या कृषि मंडी खत्म होंगी?
सरकार कहती है : राज्यों में चल रहीं मंडियां जारी रहेंगी। लेकिन, किसान के पास खुले बाजार में कहीं भी बेचने का हक भी होगा।
विरोध में तर्क: शुरुआत में तो मंडियां चलेंगी पर धीरे-धीरे कॉरपोरेट कब्जा कर लेंगे। मंडियों का मतलब नहीं रह जाएगा।

2. क्या समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा?
सरकार कहती है : न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी बना रहेगा। सरकार एमएसपी पर ही कृषि उपज की खरीदारी जारी रखेगी।
विरोध में तर्क : जब कॉरपोरेट कंपनियां किसान से पहले ही कॉन्ट्रैक्ट कर लेंगी तो एमएसपी की अहमियत ही खत्म हो जएगी।

3. उचित कीमत कैसे मिलेगी?
सरकार कहती है : किसान देश में किसी भी बाजार या ऑनलाइन ट्रेडिंग से फसल बेच सकता है। कई विकल्पों से बेहतर कीमत मिलेगी।
विरोध में तर्क : कीमतें तय करने का कोई सिस्टम नहीं होगा। प्राइवेट सेक्टर की ज्यादा खरीदारी से एक कीमत तय करने में दिक्कत होगी।

4. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में ठगी हुई तो क्या?
सरकार कहती है : किसान को तय मिनिमम रकम मिलेगी। कॉन्ट्रैक्ट, किसान की फसल और इंफ्रास्ट्रक्चर तक सीमित रहेगा। किसान की जमीन पर कोई कंट्रोल नहीं होगा। विवाद पर एडीएम 30 दिन में फैसला देगा।
विरोध में तर्क : कॉरपोरेट या व्यापारी अपने हिसाब से फर्टिलाइजर डालेगा और फिर जमीन बंजर भी हो सकती है।

हरसिमरत कौर के इस्तीफे के मायने
वोट बैंक खिसकने का डर, क्योंकि...

पंजाब के कृषि प्रधान क्षेत्र मालवा में अकाली दल की पकड़ है। अकाली दल को 2022 के विधानसभा चुनाव दिखाई दे रहे हैं। इस्तीफा देना मजबूरी भी बन गई थी। क्योंकि, चुनावों में अब लगभग डेढ़ साल ही बचा है। ऐसे में शिरोमणि अकाली दल किसानों के एक बड़े वोट बैंक को अपने खिलाफ नहीं करना चाहता है।

अकाली दल पर दबाव था
बेअदबी और पार्टी में फूट से जूझ रहे अकाली दल के लिए कृषि विधेयक गले की फांस बन गए थे, क्योंकि अगर पार्टी इनके लिए हामी भरती तो प्रदेश के बड़े वोट बैंक (किसानों) से हाथ धोना पड़ता। उधर, दूसरी बार मंत्री बनीं हरसिमरत पर विधेयकों को लेकर पद छोड़ने का दबाव भी बना हुआ था।

दो धड़ों में बंट गई थी पार्टी
पंजाब में बिल के विरोध में अकाली दल के अलग-अलग नेता हरसिमरत के इस्तीफे को लेकर 2 धड़ों में बंटे थे। सूत्रों के मुताबिक, शिरोमणि अकाली दल के कई सीनियर नेता पार्टी अध्यक्ष से कह चुके थे कि पार्टी का वजूद किसानों को लेकर ही है। इसलिए, अगर केंद्र बात नहीं मानता है तो हरसिमरत को इस्तीफा दे देना चाहिए।

इन 3 विधेयकों का विरोध

  • फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) बिल
  • फार्मर्स (एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज बिल
  • एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) बिल

इन तीनों विधेयकों को सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 5 जून को ऑर्डिनेंस के जरिए लागू किया था। तब से ही इन पर हंगामा मचा हुआ है। केंद्र सरकार इन्हें अब तक का सबसे बड़ा कृषि सुधार कह रही है। लेकिन, विपक्षी पार्टियों को इनमें किसानों का शोषण और कॉरपोरेट्स का फायदा दिख रहा है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर मोदी कैबिनेट में फूड प्रोसेसिंग मिनिस्टर का पोर्टफोलियो संभाल रही थीं।


from Dainik Bhaskar /national/news/parliament-monsoon-session-rajya-sabha-and-lok-sabha-news-and-updates-18-september-2020-127729760.html
via IFTTT

Related Posts:

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें